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नार्निया की कहानियाँ आख़री युद्ध

सी.एस.लुइस

प्रकाशक : हार्परकॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6416
आईएसबीएन :978-81-7223-743

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नार्निया....जहाँ डर पनपता है...जहाँ वफ़ादारी का इम्तिहान लिया जाता है...जहाँ सब उम्मीदें ख़त्म होती दिखती हैं..

इस पुस्तक का सेट खरीदें Akhari Yudhya a hindi book by C.S. Lewis - आख़री युद्ध - सी. एस. ल्यूइस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आख़री युद्ध, महायुद्ध

नार्निया......जहाँ डर पनपता है...जहाँ वफ़ादरी का इम्तिहान लिया जाता है......जहाँ सब उम्मीदें खत्म हो दिखती हैं।’’

आख़री दिनों में नार्निया को बहुत से ख़तरों का सामना करना पड़ता है। किसी बाहरी दुश्मन का नहीं क्योंकि अक्सर दुश्मन घर में ही होते हैं। झूठ व धोखा जड़ें पकड़ लेते हैं। अब केवल राजा व उसके मुट्टी भर वफ़ादार साथी अपने प्यारे नार्निया को तहस-नहस होने से बचा सकते हैं।

आख़री युद्ध


जब जिल और यूस्टॅस एक झटके में नार्निया पहुँच जाते हैं, तो वे वहाँ सब कुछ बिखरा पाते हैं। शिफ्ट, सबसे चालाक, दिखने में भद्दा और झुर्रियों से भरा लंगूर बेचारे पज़ल नाम के गधे को शेर की खाल पहना कर आस्लान का भेस अपनाने के लिए मजबूर कर देता है। तो जब आस्लान गलत आदेश देने लगता है तो जानवर और बौनों को समझ नहीं आता कि क्या किया जाये और किस पर भरोसा किया जाये। अब इससे पहले कि जानवर बिगड़े और राज्य की शान्ति भंग हो, नार्निया के राजा टिरियन को जल्दी ही कुछ करना चाहिये। महायुद्ध में जब, नार्निया के शानदार राज्य के भविष्य का फैसला लेने के लिए, टिरियन की मदद को पीटर, एडमंड और लूसी आकर जिल और यूस्टॅस के साथ मिल जाते हैं तो सब एकदम हैरान पर खुश हो जाते हैं।

नार्निया की कहानियों का यह सातवाँ और आख़री जोश भरा किस्सा है।

कॉलड्रॉन पूल के पास


नार्निया के आख़री दिनों में, लैन्टर्न वेस्ट के परे, बड़े झरने के पास, दूर पश्चिम में शिफ्ट नाम का एक लंगूर रहता था। वह बहुत बूढ़ा था। कोई नहीं जानता कि वह उस जगह रहने कब आया था। उनका झुर्रियों से भरा चेहरा बहुत भद्दा दिखता था पर वह था बहुत ही चालाक। जंगल के एक बड़े से पेड़ में, लकड़ी से बना और पत्तों से छता उसका छोटा सा घर था। जंगल के इस ओर हमारी तरह बोलने वाले जानवर, आदमी या बौने या किसी भी तरह के जीव कम थे, पर वहाँ पज़ल नाम का एक गधा रहता था जो शिफ्ट का मित्र भी था और पड़ोसी भी। कम से कम वे दोनों तो यही कहते थे। पर दोनों को देख कर तो ऐसा लगता था जैसे पज़ल शिफ्ट का नौकर हो, मित्र नहीं। सब काम वही करता था। जब दोनों नदी पर जाते थे, शिफ्ट बड़ी बड़ी मुश्कों में पानी भरता था, और पज़ल उनको वापिस ढोता था। जब उन्हें दूर नदी के परे, कस्बे से कुछ चाहिये तो पज़ल ही खाली बैगें अपनी पीठ पर लाद कर जाता था और इन्हें भर कर वापिस लाता था।

पज़ल जो भी अच्छी-अच्छी चीज़ें लाता, शिफ्ट मज़े ले ले कर खाता और कहता, ‘‘पज़ल, मैं तुम्हारी तरह घास-फूस और झाड़ू नहीं खा सकता इसलिए मैं ये सब चीजें खा कर ही पेट भर लूंगा।’’

पज़ल का जवाब सदा यही होता: ‘हाँ, हाँ शिफ्ट, कोई बात नहीं।’

पज़ल ने कभी कोई शिकायत नहीं की क्योंकि उसे पता था कि शिफ्ट उससे कहीं अधिक बुद्धिमान था और वह शिफ्ट की दोस्ती को ऐहसान मानता था। यदि पज़ल कभी किसी बात के लिए बहस करने की कोशिश भी करता तो शिफ्ट कहता, ‘‘पज़ल, मुझे तुमसे ज़्यादा पता है कि क्या करना है। तुम तो जानते हो कि तुम बुद्धिमान नहीं हो।’’

और पज़ल का जवाब सदा यही होता, ‘‘हाँ शिफ्ट, तुम बिल्कुल ठीक कहते हो। मैं बुद्धिमान नहीं हूँ।’’ तब वह ठंडी आह भर कर वही करता जो शिफ्ट उसे कहता।
एक दिन सुबह, वे दोनों कॉल्ड्रॉन पूल के किनारे सैर कर रहे थे।
कॉल्ड्रान पूल नार्निया के पश्चिमी छोर पर चोटी के नीचे है। एक बहुत बड़ा झरना शोर करता हुआ गड़बड़ाहट के साथ इसमें गिरता है। इसकी दूसरी ओर से नार्निया नदी निकलती है। इस झरने के गिरने से ऐसा लगता है जैसे पूल का पानी खुश हो कर नाचता मस्ती से गोल-गोल घूम रहा हो; जैसे उबल रहा हो। बस इसीलिए इसका नाम कॉल्ड्रॉन पूल पड़ गया।

बसन्त ऋतु के शुरू में, नार्निया के परे के जंगलों में पश्चिमी पहाड़ों पर बर्फ के पिघलने से जब झरना भर जाता है, तो यह नज़ारा बेहद खूबसूरत होता है। बस इसी पूल के किनारे वे दोनों सैर कर रहे थे।

जैसे ही उन्होंने कॉल्ड्रॉन फूल को देखा, शिफ्ट ने अचानक अपनी काली, पतली उँगली से इशारा कर के कहा, ‘‘देखो, वह क्या है ?’’
पज़ल बोला, ‘‘क्या, क्या है ?’’
‘‘वह पीली सी चीज़, जो अभी-अभी झरने में गिरी, देखो ! वह, वहाँ तैर रही है। आओ देखें क्या है।’’
पज़ल ने पूछा, ‘‘क्या हमें पता करना चाहिये ?’’
‘‘जरूर,’’ शिफ्ट ने कहा। ‘‘हो सकता है हमारे फ़ायदे की हो। बस, अब तुम अच्छे लड़के बन कर पूल में जाओ और उसे बाहर निकाल लाओ। फिर हम उसे अच्छी तरह देखेंगे।’
‘‘पूल में जाऊं ?’’ अपने लम्बे कान खुजाते हुए पज़ल ने पूछा।
शिफ़्ट ने कहा, ‘‘यदि जाओगे नहीं तो हम उसे पाएंगे कैसे ?’’
‘‘पर-पर.....’’ पज़ल बोला। ‘‘यदि तुम जाओ तो ज़्यादा अच्छा नहीं होगा ? क्योंकि मैं नहीं, तुम जानना चाहते हो कि वो है क्या। और तुम्हारे हाथ भी हैं। और तुम्हारे हाथ भी हैं। और जब कोई चीज़ पकड़नी हो तो तुम एक आदमी या बौने की तरह पकड़ सकते हो। मेरे तो सिर्फ खुर हैं।’’
शिफ्ट बोला, ‘‘मैंने कभी सोचा न था कि तुम ऐसी बात कहोगे पज़ल। क्या ये तुम कह रहे हो ?’’
‘‘क्यों, मैंने क्या गलत कहा ?’’ पज़ल धीमी आवाज़ में बोला। उसे लगा कि शिफ्ट ने बुरा मान लिया। ‘‘मेरा मतलब था.....’’

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